Monday 28 January 2019

सुप्रसिद्ध रंग चिन्तक मंजुल भारद्वाज का नाटक “राजगति” 30 जनवरी 2019,बुधवार रात 8.00 बजे “शिवाजी नाट्य मंदिर” में मंचित होगा ।

30 जनवरी गांधी की चिंतन शहादत को नमन करते हुए ..अपनी राजनैतिक चेताना को जगाइए....विकार और विचार के फ़र्क को समझिये !



थिएटर ऑफ रेलेवन्स” अभ्यासक एवम् शुभचिन्तक आयोजित नाटक “राजगति” 30 जनवरी 2019,बुधवार रात 8.00 बजे शिवाजी नाट्य मंदिर” दादर (पश्चिम), मुंबई में मंचित होगा! सुप्रसिद्ध रंग चिन्तक मंजुल भारद्वाज लिखित और निर्देशित  
नाटक राजगति” समता,न्याय,मानवता और संवैधानिक व्यवस्था के निर्माण के लिए ‘राजनैतिक परिदृश्य’ को बदलने की चेतना जगाता है,जिससे आत्महीनता के भाव को ध्वस्त कर ‘आत्मबल’ से प्रेरित ‘राजनैतिक नेतृत्व’ का निर्माण हो।“ 

कब : 30 जनवरी 2019,बुधवार रात 8.00 बजे 

कहाँ : “शिवाजी नाट्य मंदिर”, दादर(पश्चिम)मुंबई

कलाकार:अश्विनी नांदेडकरयोगिनी चौकसायली पावसकरकोमल खामकरतुषार म्हस्के ,स्वाति वाघसचिन गाडेकरमनीष घाग,सुरेखा साळुंखेप्रियांका कांबळे।



अवधि :90 मिनट

नाटक 'राजगति', : “नाटक राजगति ‘सत्ताव्यवस्थाराजनैतिक चरित्र और राजनीति’ की गति है. राजनीति को पवित्र नीति मानता है.राजनीति गंदी नहीं है के भ्रम को तोड़कर राजनीति में जन सहभागिता की अपील करता है. ‘मेरा राजनीति से क्या लेना देना’ आम जन की इस अवधारणा को दिशा देता. आम जन लोकतन्त्र का प्रहरी है. प्रहरी है तो आम जन का सीधे सीधे राजनीति से सम्बन्ध है.समता,न्याय,मानवता और संवैधानिक व्यवस्था के निर्माण के लिए ‘राजनैतिक परिदृश्य’ को बदलने की चेतना जगाता है,जिससे आत्महीनता के भाव को ध्वस्त कर ‘आत्मबल’ से प्रेरित ‘राजनैतिक नेतृत्व’ का निर्माण हो।"


नाटक राजगति” क्यों ?
हमारा जीवन हर पल ‘राजनीति’ से प्रभावित और संचालित होता है पर एक ‘सभ्य’ नागरिक होने के नाते हम केवल अपने ‘मत का दान’ कर अपनी राजनैतिक भूमिका से मुक्त हो जाते हैं और हर पल ‘राजनीति’ को कोसते हैं ...और अपना ‘मानस’ बना बैठे हैं की राजनीति ‘गंदी’ है ..कीचड़ है ...हम सभ्य हैं ‘राजनीति हमारा कार्य नहीं है ... जब जनता ईमानदार हो तो उस देश की लोकतान्त्रिक ‘राजनैतिक’ व्यवस्था कैसे भ्रष्ट हो सकती है ? .... आओ अब ज़रा सोचें की क्या बिना ‘राजनैतिक’ प्रकिया के विश्व का सबसे बड़ा ‘लोकतंत्र’ चल सकता है ... नहीं चल सकता ... और जब ‘सभ्य’ नागरिक उसे नहीं चलायेंगें तो ... बूरे लोग सत्ता पर काबिज़ हो जायेगें ...और वही हो रहा है ... आओ ‘एक पल विचार करें ... की क्या वाकई राजनीति ‘गंदी’ है ..या हम उसमें सहभाग नहीं लेकर उसे ‘गंदा’ बना रहे हैं हम सब अपेक्षा करते हैं की ‘गांधी , भगत सिंह , सावित्री और लक्ष्मी बाई’ इस देश में पैदा तो हों पर मेरे घर में नहीं ... आओ इस पर मनन करें और ‘राजनैतिक व्यवस्था’ को शुद्ध और सार्थक बनाएं ! समता,न्याय,मानवता और संवैधानिक व्यवस्था के निर्माण के लिए ‘राजनैतिक परिदृश्य’ को बदलने की चेतना को जगाएं ,ताकि आत्महीनता का भाव ध्वस्त हो और ‘आत्मबल’ से प्रेरित ‘राजनैतिक नेतृत्व’ का निर्माण हो।
थिएटर ऑफ रेलेवन्स नाट्य दर्शन विगत 26 वर्षों से फासीवादी ताकतों से जूझ रहा है भूमंडलीकरण और फासीवादी ताकतें ‘स्वराज और समता’ के विचार को ध्वस्त कर समाज में विकार पैदा करती हैं जिससे पूरा समाज ‘आत्महीनता’ से ग्रसित होकर हिंसा से लैस हो जाता है. हिंसा मानवता को नष्ट करती है और मनुष्य में ‘इंसानियत’ का भाव जगाती है कला. कला जो मनुष्य को मनुष्यता का बोध कराए...कला जो मनुष्य को इंसान बनाए! “थिएटर ऑफ़ रेलेवंस”... एक चौथाई सदी यानी 26 वर्षों से सतत सरकारीगैर सरकारीकॉर्पोरेटफंडिंग या किसी भी देशी विदेशी अनुदान से परे. सरकार के 300 से 1000 करोड़ के अनुमानित संस्कृति संवर्धन बजट के बरक्स ‘दर्शक’ सहभागिता पर खड़ा है हमारा रंग आन्दोलन.. मुंबई से मणिपुर तक !

लेखक निर्देशक : रंग चिन्तक मंजुल भारद्वाज रंग दर्शन थिएटर ऑफ रेलेवेंसके सर्जक प्रयोगकर्त्ता हैंजो राष्ट्रीय चुनौतियों को सिर्फ स्वीकार करते हैंबल्कि अपने नाट्य सिद्धांत "थिएटर आफ रेलेवेंस" के माध्यम से वह राष्ट्रीय एजेंडा भी तय करते हैं। 28 से अधिक नाटकों का लेखननिर्देशन तथा अभिनेता के रूप में 16000 से ज्यादा बार राष्ट्रीय और अन्तरराष्ट्रीय मंचों पर अपनी उपस्थिति दर्ज करा चुके हैं!
दर्शक सहयोग और सहभागिता से आयोजित इस मंचन में आपके  सक्रिय सहयोग और सहभागिता की अपेक्षा !
विस्तृत जानकारी के लिए सम्पर्क :9820391859/etftor@gmail.com

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