Thursday 28 December 2017

" मेरे जीवन के रंग दिखाने वाला ‘थिएटर ऑफ रेलेवन्स नाट्य दर्शन का 25 वर्षीय उत्सव’ मेरे जीवन के अस्तित्व का निर्माण कर रहा है " - रंगकर्मी तुषार म्हस्के

सामने आईना था और मैं अपनी शक्ल आइने  में देख रहा था ...आज मेरी  आँखे चमक रही थी और मैं देख रहा था... अपने आप को ...आँखे लाल हो गई  आँखों से पानी बह निकला ... आज मेरे आँखों से ख़ुशी के आंसू बह निकले थे ... मेरा हाथ आँसूओं को आँखों से हटाने लगा ... अलग - अलग
रंगों के शेड्स मुझे दिखाई देने लगे  ... क्या मैं देखता अपने आप को , शरीर का आकार मेरे सोच के साथ बदलने लगा ... अलग - अलग कलाकारों की  भूमिका  आइने में दिखने लगी थी ...कभी मैं कहता नजर आया की, " हे हिंदवी स्वराज्य व्हावे ही श्रीं ची इच्छा " इस बात के साथ शिवाजी महाराज की प्रतिमा आइने में दिखने लगती , तो कभी भगत सिंह बनकर " मेरा रंग दे बसंती चोला " कहकर देश के आजादी के आँसूओं के साथ फ़ासी पर जा रहे ...२३ साल उम्र का युवा सामने आता था ... आँखे बंद करके खोलने के  बाद में ऐसा लगने लगा ... शिक्षा की ज्योत लगाने के लिए अपने जीवन साथी को प्रेरित करने वाला महात्मा फुले भी मेरे आँखों में झलक रहा था ... मेरे सामने व्यक्तियों के विचार मानो एक - एक भूमिका लेकर
झलकने  लगे थे ... एक ही समय में मेरे साथ यह क्या होने लगा ...इसके साथ मैं अपने आप को सवाल करता .. मेरे सामने एक ही शब्द आता था " रंगकर्मी " ..मेरे अंदर के विचार के लिए जीने वाला कलाकार
, अपनी एक - एक अदा से दुनिया को प्रेरणा देने के लिए जीने वाला रंगकर्मी ...यह अहसास मुझे तब हो गया जब मैं थियेटर ऑफ़ रेलेवंस नाट्य दर्शन का 25 साल का कलात्मक उत्सव , पनवेल में मना रहा था..

वासुदेव बलवंत फडके नाट्यगृह .. 18, 19 और 20 दिसंबर 2017. कला के लिये काल बनने जा रहे इस महोत्सव में ... दूसरे दिन के नाटक की प्रस्तुति के बाद जब मैं आईने के सामने गया तो ... इस सुनहरे पल का अहसास मुझे हुआ ...


इतिहास को रचते - रचते काल का अध्याय बनाते हुए थियेटर ऑफ़ रेलेवंस की यह यात्रा 1992 से शुरू है .. पनवेल में थियेटर ऑफ़ रेलेवंस का  महोत्सव , मेरे अंदर के व्यक्ति को मजबूत कर रहा था तो दूसरी तरफ मेरे अंदर के कलाकार को सक्षम कर रहा था ...
विचार दिमाग में मंचन करने लगे थे ...मैं विचारों के साथ अपने आप को समझ रहा था , देख रहा था ...यही ख्वाब जो देखता था ..रंगकर्म करने का... वह अब मैं करने लगा था..!

शब्दों की भाषा जो मुझे हमेशा पहाड़ उठाने वाली लगी थी वह आज मुझे प्रेरणा देने लगी ...क्या मैं कहता ? .. क्या मैं  करता ?.. बस उस पल खुद से मिलने के अहसास को महसूस करता  ..
आज परवाह नहीं किसी की, आज चिंता नहीं किसी की , अपने किये हुए कर्मों पर आज भरोसा होने लगा.

नाटक प्रस्तुति के दौरान लगने लगा... यह इतने जल्दी खत्म कैसे हो गया ?..मंजुल भारद्वाज द्वारा लिखित और निर्देशित नाटक गर्भ का यह अनुभव मुझे अहसास दे रहा था..."  आज यह विश्व सिर्फ मेरा है ... आज मेरी खुद से स्वीकार्यता बनी हुई है !" ... एक सकारात्मक दृष्टिकोण मेरे विचारों में निर्माण होने लगा है ...मुझे जीवन का हर लम्हा जीना है ..मुझे हर पल नयापन ढूंढ़ना है ...हर पल का नियोजन करके मुझे उसे व्यवहार जगत में उतारना है ...नाटक " गर्भ " की प्रस्तुति के बाद प्रेक्षक बोल रहे थे ...जीवन का पूरा अर्थ मुझे इस नाटक में समझ आ गया ...नाटक देखते समय ऐसा लगने लगा मेरे जीवन के सारे सवालों का जवाब  इस नाटक में दिया हुआ है ...नाटक देखने के बाद  प्रेक्षक बोले " हमें ऐसा लग रहा है कि, मंच पर आकर आपके साथ performance किया जाए ..."
एक कलाकार का सबसे बड़ा ध्येय है ...जनमानस में कला के लिए आत्मीयता निर्माण हो , उनको लगे कि, यह नाटक मेरा है ..नाटक को देखने के बाद लगे मेरे जीवन की , गाथा इसमें है ...मेरे जीवन की  उलझनों को सुलझाने का मार्ग मिल रहा है और यह अनुभव मुझे होने लगा .. थिएटर ऑफ रेलेवन्स नाटक से जीवन को समझने की दृष्टि प्रेक्षकों को 1992 से दे रहा है ..

व्यक्ति के अंदर की आवाज जो हर पल व्यक्ति को सुनाई देती है ! उस आवाज को हम दुनिया दारी के चक्कर में अनसुना कर देते हैं  ..." अनहद नाद - Unheard Sounds of  Universe " मंजुल भारद्वाज द्वारा लिखित और निर्देशित नाटक.. उस अनसुनी आवाज को सुनने का आगाज है ...

अनहद नाद नाटक ने मेरे अंदर के कलाकार को मजबूती से बाहर निकाला. व्यक्ति को जीवन जीने का जरिया दिया जिसकी वजह से मेरे अंदर का व्यक्तित्व  सक्षम होने लगा ... अनहद नाद नाटक देखने के बाद प्रेक्षक अपनी अमृत वाणी से बता रहे थे ! " अनहद नाद नाटक केवल नाटक नहीं है ... जीवन जीने का एक जरिया है ...जीवन में किस तरह  जीते हैं उसकी प्रक्रिया इस नाटक ने मुझे बताई , आज तक मैं क्या जीवन जी रही थी ! यह नाटक देखने के बाद ऐसा लगा कि , अभी तक जिस तरह से जीवन जीया है क्या सच में मैं जीवन जी रही थी? ... नाटक देखने के बाद जीवन जीने का अर्थ अब मुझे समझ आ गया है , इसके आगे जीवन किस तरह से जीया जाए यह मुझे प्रस्तुति के बाद  पता चला ! "

जबान पर शब्द थे ! मन के भाव सब बाहर निकल रहे थे .. प्रेक्षकों के मन के अंदर के भाव बिना बोले भी समझ आने लगे थे ...



एक प्रस्तुति और उसके  अलग आयाम सामने आने लगे ... प्रेक्षक अब भावनाओं के परे नाटक के विचार को समझने लगे ! नाटक " न्याय के भंवर में भंवरी "  जिसका लेखन और निर्देशन  मंजुल भारद्वाज जी ने किया ... घर में , समाज में , राज्य में और राष्ट्र में हम चाहते हैं  ... न्याय संगत व्यवस्था ...  क्या सच में हम न्याय दे पाते हैं  अपने ही घर में ...? एक लड़का और लड़की के भेदभाव से यह युद्ध शुरू हो जाता है ! घर के सारे बड़े और बुजुर्ग भी इस असमानता को कभी तोड़ ही नहीं पाए.. ना कभी उसके उपर पर बात हो पायी ... नाटक के विचार और उसका प्रेजेंटेशन इतना अद्धभुत है .. कलाकार नाटक के विचार सहजता से perform  करते हैं  ... प्रेक्षकों को जीवन के अनेक सवालों के उत्तर मिल जाते हैं  ... लेखक ने बड़ी खूबसूरती से इसको लिखा है जिसकी वजह से शब्द केवल शब्द ना होकर . एक दॄष्टि बन जाते हैं  ! नाटक देखने के बाद प्रेक्षकों ने  चर्चा कि ...." अपने अंदर के भावों को सहजता से व्यक्त किया, साथ ही सवाल निर्माण हो गये ! उन सवालों के जवाब भी साथ लेकर विचार स्पष्ट करके प्रेक्षक नई दृष्टि के साथ जीवन जीने के लिए चले गए "


तीन नाटकों की प्रस्तुति से सजा थियेटर ऑफ रेलेवन्स नाट्य उत्सव का पनवेल महोत्सव...
थियेटर ऑफ रेलेवन्स नाट्य सिद्धान्त में प्रेक्षक सशक्त रंगकर्मी है !

इस नाट्य महोत्सव  का आयोजन थिएटर ऑफ रेलेवन्स अभ्यासक एवं शुभचिंतकों  ने किया था !
18, 19 और 20 दिसम्बर 2017 को ,
18 दिसंबर 2017 को रात 8:30 बजे - नाटक " गर्भ "
19 दिसंबर 2017 को शाम 5:00 बजे - नाटक " अनहद नाद - Unheard Sounds of Universe "
20 दिसंबर  2017 को रात 8:30 बजे - नाटक " न्याय के भंवर में भंवरी " का मंचन हुआ !

थियेटर ऑफ रेलेवन्स नाट्य उत्सव में  प्रस्तुत किये गए नाटकों का लेखन और निर्देशन रंगचिंतक मंजुल भारद्वाज जी ने किया ...
कलाकार :- बबली रावत , अश्विनी नांदेडकर , सायली पावसकर , योगिनी चौक , कोमल खामकर और तुषार म्हस्के
लाइट्स :- निखिल
आयोजक :- अश्विनी नांदेडकर और सायली पावसकर




रंगकर्मी - तुषार म्हस्के ( 9029333147 )
tmhaske09@gmail.com

Thursday 14 December 2017

#Celebrating 25 Years of #Collectivism, #Passion, #Class & #Creation of #Audience & #Performers

#Celebrating 25 Years of #Collectivism, #Passion, #Class &
#Creation of #Audience & #Performers
#TheatreofRelevancePanvelFest
"#पनवेल में 3 दिवसीय थिएटर ऑफ़ रेलेवंस #नाट्यउत्सव”
18,19,20 दिसम्बर , 2017
“#थिएटरऑफ़रेलेवंस" नाट्य दर्शन के 25 वर्ष





   
 





        














Monday 11 December 2017

“थिएटर ऑफ रिलेव्हन्स ” नाट्यदर्शनाचा २५ वर्षपूर्ती सोहळा

थियेटर ऑफ रेलेवंस नाट्य सिद्धांताला १२ ऑगस्ट २०१७ रोजी आपल्या रंगयात्रेची २५ वर्षे  पूर्ण केली आहेत.या २५ वर्षात “थियेटर ऑफ रेलेव्हन्स” नाट्य दर्शनाने देश-विदेशात आपली जागतिक ओळख, स्वीकृती मिळवली आहे.


१९९० नंतर जागतिकीकरणाचा युग सुरु झालं. त्या जागतिकीकरणात बोललं जात जग जवळ आले खरतर जग जवळ आले. पण, माणसा- माणसातील संवाद कमी झाला . अर्थ कमविण्यासाठी धावपळ वाढली .त्यातच मानवी मुल्यांचा ऱ्हास होण्यास सुरुवात झाली.


१९९० नंतरच्या अर्थहीन होण्याच्या काळात, एकाधिकारशाही आणि वर्चस्ववादी धोरणांच्या काळात, विज्ञान हे तंत्रज्ञाना पुरते सीमित होण्याच्या काळात, केवळ खरेदी- विक्री यांवर भर असण्याच्या या काळात जनतेला त्यांच्या मुद्यांसाठी "चिंतन” करण्यासाठी एका विचार मंचाची आवश्यकता आहे, या जाणिवेने १२ ऑगस्ट १९९२ पासून “थियेटर ऑफ रेलेवंस” हा  रंग सिद्धांत जनतेसाठी 'चिंतन मंच' म्हणून उदयास आला.

“थिएटर ऑफ रेलेवंस” चे सिद्धांत :
1. असा रंगकर्म ज्याची सृजनशीलता विश्वाला मानवीय आणि उत्तम बनवण्यासाठी प्रतिबद्ध असेल.
2. कला, कलेसाठी नसून समाजाप्रती असणाऱ्या आपल्या जबाबदाऱ्यांचे पालन करणारी असावी आणि हि कला लोकांच्या जीवनाचाच एक हिस्सा असावी.
3. कला जी मानवीय गरजांना पूर्ण करेल आणि स्वतःला अभिव्यक्ति माध्यमाच्या रुपात व्यक्त करेल.
4. जी स्वतःतील बदलांच्या माध्यमांचा शोध घेईल, स्वतःचा शोध घेईल आणि रचनात्मक बदलाची प्रक्रिया पुढे घेऊन जाईल.
5. असा रंगकर्म जो मनोरंजनाच्या सीमा ओलांडून जीवन जगण्याचे स्रोत वा पद्धती बनेल.
( रंग चिंतक – “थिएटर ऑफ़ रेलेवंस” चे निर्माता व प्रयोगकर्ता मंजुल भारद्वाज यांनी १२ ऑगस्ट ११९२ साली ”थिएटर ऑफ रेलेवंस” चा निर्माण केला आणि तेव्हापासून “थिएटर ऑफ रेलेवंस” नाट्य दर्शनाचा अभ्यास आणि क्रियान्वन भारत आणि जागतिक स्तरावर होत आहे. )

आज विकासाच्या नावाखाली एकच चढाओढ सुरु झालेली आहे. या चढा ओढीत एकाधिकाराचा सर्वीकडे गोंधळ सुरु झालेला आहे. गर्दीचा आवाज आणि कोलाहल यामध्ये आपला आवाज ,आपल्या अंतकरणातील आवाज हा दबला जात आहे. किंबहुना त्याला दाबण्याचा षड्यंत्र सुरु झालेला आहे. यातच , आज विकासाच्या नावाखाली निसर्गाच्या विनाश काळात,  माणसाने “माणूस” म्हणून राहणे हे एक आव्हान झाले आहे. मंजुल भारद्वाज लिखित आणि दिग्दर्शित  नाटक “गर्भ”, “अनहद नाद – Unheard Sounds of universe” आणि “न्याय के भंवर में भंवरी” या क्लासिक नाटकांच्या माध्यमातुन आपणांस आपल्या आंतील आवाज ऐकवण्यासाठी, ही तीन कलात्मक नाटके घेऊन येत आहोत.

या तिन्ही नाटकांची प्रस्तुती पनवेल येथील वासुदेव बळवंत फडके नाट्यगृहात होणार असून तारीख आणि वेळ पुढीलप्रमाणे :
१८ डिसेंबर रोजी रात्री 8.30  वाजता 'गर्भ' -


" गर्भ " - हा एक संघर्ष आहे आपल्या अस्तित्वाच्या निर्माणाचा, हा संघर्ष आहे माणसाचा "माणूस" म्हणून जगण्याचा, मानवतेला वाचवण्याचा, समाजाने आपल्या सोयीसाठी बनवलेल्या विचार धारणांना तोडून स्वतःकडे पाहण्याचा आणि विश्वाला सुंदर बनवण्याचा! हे नाटक एक सकारात्मक दृष्टीचा निर्माण करतं, जन्म संयोगापासून, वर्षानुवर्षे चालत आलेल्या परंपरा, रुढीवादी संस्कार, समज, वैचारिक जडत्व हे देखील जन्म घेतात आणि यांपासून कितीही दूर जाण्याचा प्रयज्ञ केला तरी ते आपली पाठ सोडत नाहीत याच जडत्वाला तोडून आपल्याला उन्मुक्तता देते "गर्भ"! या नाटकाच्या माध्यमाने जगभरात होत असलेल्या वंशभेद ,जातिभेद, धर्म, आणि राष्ट्रवादाच्या ओढाताणीत अडकलेल्या किंवा लुप्त होत असलेल्या  मानवतेला वाचवण्याची संघर्ष गाथा अतिशय सौंदर्यासह सादर पहायला मिळते.


१९ डिसेंबर रोजी दुपारी 4.30 वाजता 'अनहद नाद unheard sounds of universe' -



“अनहद नाद - अन हर्ड साउंड्स ऑफ़ युनिवर्स ” हे नाटक कलात्मक गरजांचा शोध घेतं . जे कला व कलाकाराला उत्पादिकरणाच्या बंधनातून मुक्त करते . कारण , कला हि उत्पाद आणि कलाकार हा उत्पादक नाही आणि जीवन नफा - तोट्याची बैलेंसशीट नाही . याचकरिता हे नाटक, कला आणि कलाकाराला उत्पाद आणि उत्पादिकरणांमुक्त करते . त्यांना सकारात्मक , सृजनात्मक आणि कलात्मक उर्जेने उत्तम आणि सुंदर विश्व निर्मिती करण्यासाठी प्रेरित आणि  प्रतिबद्ध करते .

२० डिसेंबर रोजी रात्री 8.30 वाजता 'न्याय के भंवर में भंवरी' होणार आहे.


नाटक “न्याय के भँवर में भंवरी” मध्ये मानवी सभ्यतेच्या उदयापासून ते आजतागायत पितृसत्तेतून उगम पावलेल्या शोषणकारी आणि दडपशाही प्रवृत्ती ने स्रीच्या सामाजिक न्याय आणि समतेचा बळी घेतला आहे व कशाप्रकारे ह्या पुरुषप्रधान समाजात परंपरा आणि संस्कृतीच्या नावाखाली स्रीला गुलामीच्या बेड्यात अडकवण्याचे षडयंत्र रचले गेले, याचे सखोल विस्तारित वर्णन आणि विश्लेषण पाहायला मिळते. ह्या नाटकाच्या माध्यमाने पितृसत्ताक व्यवस्थेला आणि समाज रचनेला प्रहार करून ,एका न्यायसंगत आणि समानताप्रिय समाजाची निर्मिती करण्याचा संदेश मिळतो.

मंजुल भारद्वाज लिखित व दिग्दर्शित आणि अश्विनी नांदेडकर, योगिनी चौक, सायली पावसकर, कोमल खामकर, तुषार म्हस्के अभिनीत प्रसिद्ध नाटक,“गर्भ” आणि “अनहद नाद –अनहर्ड साउंड्स ऑफ़ युनिव्हर्स आणि प्रसिद्ध अभिनेत्री बबली रावत अभिनीत नाटक “न्याय के भंवर में भंवरी” नाटकांची प्रस्तुती वासुदेव बळवंत फडके नाट्यगृह, पनवेल. येथे अनुक्रमे १८ डिसेंबर २०१७ ला रात्रौ ८.३० वा , १९  डिसेंबर २०१७ ला सायं. ५.०० वा. आणि  20 डिसेंबर  २०१७  रोजी  रात्रौ ८.३० वाजता होईल.