Thursday 28 December 2017

" मेरे जीवन के रंग दिखाने वाला ‘थिएटर ऑफ रेलेवन्स नाट्य दर्शन का 25 वर्षीय उत्सव’ मेरे जीवन के अस्तित्व का निर्माण कर रहा है " - रंगकर्मी तुषार म्हस्के

सामने आईना था और मैं अपनी शक्ल आइने  में देख रहा था ...आज मेरी  आँखे चमक रही थी और मैं देख रहा था... अपने आप को ...आँखे लाल हो गई  आँखों से पानी बह निकला ... आज मेरे आँखों से ख़ुशी के आंसू बह निकले थे ... मेरा हाथ आँसूओं को आँखों से हटाने लगा ... अलग - अलग
रंगों के शेड्स मुझे दिखाई देने लगे  ... क्या मैं देखता अपने आप को , शरीर का आकार मेरे सोच के साथ बदलने लगा ... अलग - अलग कलाकारों की  भूमिका  आइने में दिखने लगी थी ...कभी मैं कहता नजर आया की, " हे हिंदवी स्वराज्य व्हावे ही श्रीं ची इच्छा " इस बात के साथ शिवाजी महाराज की प्रतिमा आइने में दिखने लगती , तो कभी भगत सिंह बनकर " मेरा रंग दे बसंती चोला " कहकर देश के आजादी के आँसूओं के साथ फ़ासी पर जा रहे ...२३ साल उम्र का युवा सामने आता था ... आँखे बंद करके खोलने के  बाद में ऐसा लगने लगा ... शिक्षा की ज्योत लगाने के लिए अपने जीवन साथी को प्रेरित करने वाला महात्मा फुले भी मेरे आँखों में झलक रहा था ... मेरे सामने व्यक्तियों के विचार मानो एक - एक भूमिका लेकर
झलकने  लगे थे ... एक ही समय में मेरे साथ यह क्या होने लगा ...इसके साथ मैं अपने आप को सवाल करता .. मेरे सामने एक ही शब्द आता था " रंगकर्मी " ..मेरे अंदर के विचार के लिए जीने वाला कलाकार
, अपनी एक - एक अदा से दुनिया को प्रेरणा देने के लिए जीने वाला रंगकर्मी ...यह अहसास मुझे तब हो गया जब मैं थियेटर ऑफ़ रेलेवंस नाट्य दर्शन का 25 साल का कलात्मक उत्सव , पनवेल में मना रहा था..

वासुदेव बलवंत फडके नाट्यगृह .. 18, 19 और 20 दिसंबर 2017. कला के लिये काल बनने जा रहे इस महोत्सव में ... दूसरे दिन के नाटक की प्रस्तुति के बाद जब मैं आईने के सामने गया तो ... इस सुनहरे पल का अहसास मुझे हुआ ...


इतिहास को रचते - रचते काल का अध्याय बनाते हुए थियेटर ऑफ़ रेलेवंस की यह यात्रा 1992 से शुरू है .. पनवेल में थियेटर ऑफ़ रेलेवंस का  महोत्सव , मेरे अंदर के व्यक्ति को मजबूत कर रहा था तो दूसरी तरफ मेरे अंदर के कलाकार को सक्षम कर रहा था ...
विचार दिमाग में मंचन करने लगे थे ...मैं विचारों के साथ अपने आप को समझ रहा था , देख रहा था ...यही ख्वाब जो देखता था ..रंगकर्म करने का... वह अब मैं करने लगा था..!

शब्दों की भाषा जो मुझे हमेशा पहाड़ उठाने वाली लगी थी वह आज मुझे प्रेरणा देने लगी ...क्या मैं कहता ? .. क्या मैं  करता ?.. बस उस पल खुद से मिलने के अहसास को महसूस करता  ..
आज परवाह नहीं किसी की, आज चिंता नहीं किसी की , अपने किये हुए कर्मों पर आज भरोसा होने लगा.

नाटक प्रस्तुति के दौरान लगने लगा... यह इतने जल्दी खत्म कैसे हो गया ?..मंजुल भारद्वाज द्वारा लिखित और निर्देशित नाटक गर्भ का यह अनुभव मुझे अहसास दे रहा था..."  आज यह विश्व सिर्फ मेरा है ... आज मेरी खुद से स्वीकार्यता बनी हुई है !" ... एक सकारात्मक दृष्टिकोण मेरे विचारों में निर्माण होने लगा है ...मुझे जीवन का हर लम्हा जीना है ..मुझे हर पल नयापन ढूंढ़ना है ...हर पल का नियोजन करके मुझे उसे व्यवहार जगत में उतारना है ...नाटक " गर्भ " की प्रस्तुति के बाद प्रेक्षक बोल रहे थे ...जीवन का पूरा अर्थ मुझे इस नाटक में समझ आ गया ...नाटक देखते समय ऐसा लगने लगा मेरे जीवन के सारे सवालों का जवाब  इस नाटक में दिया हुआ है ...नाटक देखने के बाद  प्रेक्षक बोले " हमें ऐसा लग रहा है कि, मंच पर आकर आपके साथ performance किया जाए ..."
एक कलाकार का सबसे बड़ा ध्येय है ...जनमानस में कला के लिए आत्मीयता निर्माण हो , उनको लगे कि, यह नाटक मेरा है ..नाटक को देखने के बाद लगे मेरे जीवन की , गाथा इसमें है ...मेरे जीवन की  उलझनों को सुलझाने का मार्ग मिल रहा है और यह अनुभव मुझे होने लगा .. थिएटर ऑफ रेलेवन्स नाटक से जीवन को समझने की दृष्टि प्रेक्षकों को 1992 से दे रहा है ..

व्यक्ति के अंदर की आवाज जो हर पल व्यक्ति को सुनाई देती है ! उस आवाज को हम दुनिया दारी के चक्कर में अनसुना कर देते हैं  ..." अनहद नाद - Unheard Sounds of  Universe " मंजुल भारद्वाज द्वारा लिखित और निर्देशित नाटक.. उस अनसुनी आवाज को सुनने का आगाज है ...

अनहद नाद नाटक ने मेरे अंदर के कलाकार को मजबूती से बाहर निकाला. व्यक्ति को जीवन जीने का जरिया दिया जिसकी वजह से मेरे अंदर का व्यक्तित्व  सक्षम होने लगा ... अनहद नाद नाटक देखने के बाद प्रेक्षक अपनी अमृत वाणी से बता रहे थे ! " अनहद नाद नाटक केवल नाटक नहीं है ... जीवन जीने का एक जरिया है ...जीवन में किस तरह  जीते हैं उसकी प्रक्रिया इस नाटक ने मुझे बताई , आज तक मैं क्या जीवन जी रही थी ! यह नाटक देखने के बाद ऐसा लगा कि , अभी तक जिस तरह से जीवन जीया है क्या सच में मैं जीवन जी रही थी? ... नाटक देखने के बाद जीवन जीने का अर्थ अब मुझे समझ आ गया है , इसके आगे जीवन किस तरह से जीया जाए यह मुझे प्रस्तुति के बाद  पता चला ! "

जबान पर शब्द थे ! मन के भाव सब बाहर निकल रहे थे .. प्रेक्षकों के मन के अंदर के भाव बिना बोले भी समझ आने लगे थे ...



एक प्रस्तुति और उसके  अलग आयाम सामने आने लगे ... प्रेक्षक अब भावनाओं के परे नाटक के विचार को समझने लगे ! नाटक " न्याय के भंवर में भंवरी "  जिसका लेखन और निर्देशन  मंजुल भारद्वाज जी ने किया ... घर में , समाज में , राज्य में और राष्ट्र में हम चाहते हैं  ... न्याय संगत व्यवस्था ...  क्या सच में हम न्याय दे पाते हैं  अपने ही घर में ...? एक लड़का और लड़की के भेदभाव से यह युद्ध शुरू हो जाता है ! घर के सारे बड़े और बुजुर्ग भी इस असमानता को कभी तोड़ ही नहीं पाए.. ना कभी उसके उपर पर बात हो पायी ... नाटक के विचार और उसका प्रेजेंटेशन इतना अद्धभुत है .. कलाकार नाटक के विचार सहजता से perform  करते हैं  ... प्रेक्षकों को जीवन के अनेक सवालों के उत्तर मिल जाते हैं  ... लेखक ने बड़ी खूबसूरती से इसको लिखा है जिसकी वजह से शब्द केवल शब्द ना होकर . एक दॄष्टि बन जाते हैं  ! नाटक देखने के बाद प्रेक्षकों ने  चर्चा कि ...." अपने अंदर के भावों को सहजता से व्यक्त किया, साथ ही सवाल निर्माण हो गये ! उन सवालों के जवाब भी साथ लेकर विचार स्पष्ट करके प्रेक्षक नई दृष्टि के साथ जीवन जीने के लिए चले गए "


तीन नाटकों की प्रस्तुति से सजा थियेटर ऑफ रेलेवन्स नाट्य उत्सव का पनवेल महोत्सव...
थियेटर ऑफ रेलेवन्स नाट्य सिद्धान्त में प्रेक्षक सशक्त रंगकर्मी है !

इस नाट्य महोत्सव  का आयोजन थिएटर ऑफ रेलेवन्स अभ्यासक एवं शुभचिंतकों  ने किया था !
18, 19 और 20 दिसम्बर 2017 को ,
18 दिसंबर 2017 को रात 8:30 बजे - नाटक " गर्भ "
19 दिसंबर 2017 को शाम 5:00 बजे - नाटक " अनहद नाद - Unheard Sounds of Universe "
20 दिसंबर  2017 को रात 8:30 बजे - नाटक " न्याय के भंवर में भंवरी " का मंचन हुआ !

थियेटर ऑफ रेलेवन्स नाट्य उत्सव में  प्रस्तुत किये गए नाटकों का लेखन और निर्देशन रंगचिंतक मंजुल भारद्वाज जी ने किया ...
कलाकार :- बबली रावत , अश्विनी नांदेडकर , सायली पावसकर , योगिनी चौक , कोमल खामकर और तुषार म्हस्के
लाइट्स :- निखिल
आयोजक :- अश्विनी नांदेडकर और सायली पावसकर




रंगकर्मी - तुषार म्हस्के ( 9029333147 )
tmhaske09@gmail.com

Thursday 14 December 2017

#Celebrating 25 Years of #Collectivism, #Passion, #Class & #Creation of #Audience & #Performers

#Celebrating 25 Years of #Collectivism, #Passion, #Class &
#Creation of #Audience & #Performers
#TheatreofRelevancePanvelFest
"#पनवेल में 3 दिवसीय थिएटर ऑफ़ रेलेवंस #नाट्यउत्सव”
18,19,20 दिसम्बर , 2017
“#थिएटरऑफ़रेलेवंस" नाट्य दर्शन के 25 वर्ष





   
 





        














Monday 11 December 2017

“थिएटर ऑफ रिलेव्हन्स ” नाट्यदर्शनाचा २५ वर्षपूर्ती सोहळा

थियेटर ऑफ रेलेवंस नाट्य सिद्धांताला १२ ऑगस्ट २०१७ रोजी आपल्या रंगयात्रेची २५ वर्षे  पूर्ण केली आहेत.या २५ वर्षात “थियेटर ऑफ रेलेव्हन्स” नाट्य दर्शनाने देश-विदेशात आपली जागतिक ओळख, स्वीकृती मिळवली आहे.


१९९० नंतर जागतिकीकरणाचा युग सुरु झालं. त्या जागतिकीकरणात बोललं जात जग जवळ आले खरतर जग जवळ आले. पण, माणसा- माणसातील संवाद कमी झाला . अर्थ कमविण्यासाठी धावपळ वाढली .त्यातच मानवी मुल्यांचा ऱ्हास होण्यास सुरुवात झाली.


१९९० नंतरच्या अर्थहीन होण्याच्या काळात, एकाधिकारशाही आणि वर्चस्ववादी धोरणांच्या काळात, विज्ञान हे तंत्रज्ञाना पुरते सीमित होण्याच्या काळात, केवळ खरेदी- विक्री यांवर भर असण्याच्या या काळात जनतेला त्यांच्या मुद्यांसाठी "चिंतन” करण्यासाठी एका विचार मंचाची आवश्यकता आहे, या जाणिवेने १२ ऑगस्ट १९९२ पासून “थियेटर ऑफ रेलेवंस” हा  रंग सिद्धांत जनतेसाठी 'चिंतन मंच' म्हणून उदयास आला.

“थिएटर ऑफ रेलेवंस” चे सिद्धांत :
1. असा रंगकर्म ज्याची सृजनशीलता विश्वाला मानवीय आणि उत्तम बनवण्यासाठी प्रतिबद्ध असेल.
2. कला, कलेसाठी नसून समाजाप्रती असणाऱ्या आपल्या जबाबदाऱ्यांचे पालन करणारी असावी आणि हि कला लोकांच्या जीवनाचाच एक हिस्सा असावी.
3. कला जी मानवीय गरजांना पूर्ण करेल आणि स्वतःला अभिव्यक्ति माध्यमाच्या रुपात व्यक्त करेल.
4. जी स्वतःतील बदलांच्या माध्यमांचा शोध घेईल, स्वतःचा शोध घेईल आणि रचनात्मक बदलाची प्रक्रिया पुढे घेऊन जाईल.
5. असा रंगकर्म जो मनोरंजनाच्या सीमा ओलांडून जीवन जगण्याचे स्रोत वा पद्धती बनेल.
( रंग चिंतक – “थिएटर ऑफ़ रेलेवंस” चे निर्माता व प्रयोगकर्ता मंजुल भारद्वाज यांनी १२ ऑगस्ट ११९२ साली ”थिएटर ऑफ रेलेवंस” चा निर्माण केला आणि तेव्हापासून “थिएटर ऑफ रेलेवंस” नाट्य दर्शनाचा अभ्यास आणि क्रियान्वन भारत आणि जागतिक स्तरावर होत आहे. )

आज विकासाच्या नावाखाली एकच चढाओढ सुरु झालेली आहे. या चढा ओढीत एकाधिकाराचा सर्वीकडे गोंधळ सुरु झालेला आहे. गर्दीचा आवाज आणि कोलाहल यामध्ये आपला आवाज ,आपल्या अंतकरणातील आवाज हा दबला जात आहे. किंबहुना त्याला दाबण्याचा षड्यंत्र सुरु झालेला आहे. यातच , आज विकासाच्या नावाखाली निसर्गाच्या विनाश काळात,  माणसाने “माणूस” म्हणून राहणे हे एक आव्हान झाले आहे. मंजुल भारद्वाज लिखित आणि दिग्दर्शित  नाटक “गर्भ”, “अनहद नाद – Unheard Sounds of universe” आणि “न्याय के भंवर में भंवरी” या क्लासिक नाटकांच्या माध्यमातुन आपणांस आपल्या आंतील आवाज ऐकवण्यासाठी, ही तीन कलात्मक नाटके घेऊन येत आहोत.

या तिन्ही नाटकांची प्रस्तुती पनवेल येथील वासुदेव बळवंत फडके नाट्यगृहात होणार असून तारीख आणि वेळ पुढीलप्रमाणे :
१८ डिसेंबर रोजी रात्री 8.30  वाजता 'गर्भ' -


" गर्भ " - हा एक संघर्ष आहे आपल्या अस्तित्वाच्या निर्माणाचा, हा संघर्ष आहे माणसाचा "माणूस" म्हणून जगण्याचा, मानवतेला वाचवण्याचा, समाजाने आपल्या सोयीसाठी बनवलेल्या विचार धारणांना तोडून स्वतःकडे पाहण्याचा आणि विश्वाला सुंदर बनवण्याचा! हे नाटक एक सकारात्मक दृष्टीचा निर्माण करतं, जन्म संयोगापासून, वर्षानुवर्षे चालत आलेल्या परंपरा, रुढीवादी संस्कार, समज, वैचारिक जडत्व हे देखील जन्म घेतात आणि यांपासून कितीही दूर जाण्याचा प्रयज्ञ केला तरी ते आपली पाठ सोडत नाहीत याच जडत्वाला तोडून आपल्याला उन्मुक्तता देते "गर्भ"! या नाटकाच्या माध्यमाने जगभरात होत असलेल्या वंशभेद ,जातिभेद, धर्म, आणि राष्ट्रवादाच्या ओढाताणीत अडकलेल्या किंवा लुप्त होत असलेल्या  मानवतेला वाचवण्याची संघर्ष गाथा अतिशय सौंदर्यासह सादर पहायला मिळते.


१९ डिसेंबर रोजी दुपारी 4.30 वाजता 'अनहद नाद unheard sounds of universe' -



“अनहद नाद - अन हर्ड साउंड्स ऑफ़ युनिवर्स ” हे नाटक कलात्मक गरजांचा शोध घेतं . जे कला व कलाकाराला उत्पादिकरणाच्या बंधनातून मुक्त करते . कारण , कला हि उत्पाद आणि कलाकार हा उत्पादक नाही आणि जीवन नफा - तोट्याची बैलेंसशीट नाही . याचकरिता हे नाटक, कला आणि कलाकाराला उत्पाद आणि उत्पादिकरणांमुक्त करते . त्यांना सकारात्मक , सृजनात्मक आणि कलात्मक उर्जेने उत्तम आणि सुंदर विश्व निर्मिती करण्यासाठी प्रेरित आणि  प्रतिबद्ध करते .

२० डिसेंबर रोजी रात्री 8.30 वाजता 'न्याय के भंवर में भंवरी' होणार आहे.


नाटक “न्याय के भँवर में भंवरी” मध्ये मानवी सभ्यतेच्या उदयापासून ते आजतागायत पितृसत्तेतून उगम पावलेल्या शोषणकारी आणि दडपशाही प्रवृत्ती ने स्रीच्या सामाजिक न्याय आणि समतेचा बळी घेतला आहे व कशाप्रकारे ह्या पुरुषप्रधान समाजात परंपरा आणि संस्कृतीच्या नावाखाली स्रीला गुलामीच्या बेड्यात अडकवण्याचे षडयंत्र रचले गेले, याचे सखोल विस्तारित वर्णन आणि विश्लेषण पाहायला मिळते. ह्या नाटकाच्या माध्यमाने पितृसत्ताक व्यवस्थेला आणि समाज रचनेला प्रहार करून ,एका न्यायसंगत आणि समानताप्रिय समाजाची निर्मिती करण्याचा संदेश मिळतो.

मंजुल भारद्वाज लिखित व दिग्दर्शित आणि अश्विनी नांदेडकर, योगिनी चौक, सायली पावसकर, कोमल खामकर, तुषार म्हस्के अभिनीत प्रसिद्ध नाटक,“गर्भ” आणि “अनहद नाद –अनहर्ड साउंड्स ऑफ़ युनिव्हर्स आणि प्रसिद्ध अभिनेत्री बबली रावत अभिनीत नाटक “न्याय के भंवर में भंवरी” नाटकांची प्रस्तुती वासुदेव बळवंत फडके नाट्यगृह, पनवेल. येथे अनुक्रमे १८ डिसेंबर २०१७ ला रात्रौ ८.३० वा , १९  डिसेंबर २०१७ ला सायं. ५.०० वा. आणि  20 डिसेंबर  २०१७  रोजी  रात्रौ ८.३० वाजता होईल.

Thursday 23 November 2017

थियेटर ऑफ़ रेलेवन्स नाट्य सिद्धांताची कलात्मक २५ वर्ष : मुंबई महोत्सव... तुषार म्हस्के


थियेटर ऑफ रेलेवंस नाट्य सिद्धांताला २५ वर्षे पूर्ण झाली ...त्या निमित्य मुंबई ला ३ दिवसीय नाट्य फेस्टिवल श्री. शिवाजी मंदिर , दादर ला आयोजित करण्यात आले . आता पर्यंत ऐकण्यात आलेलं कलाकार फक्त येऊन आपली कला सादर करतात आणि आपलं मानधन घेऊन निघून जातात. त्यांचा आयोजनाशी काहीही संबंध नसतो. थियेटर ऑफ रेलेवंस हे नाट्य सिद्धांत कलाकाराना समग्रतेने काम करण्याची दिशा आणि मार्ग दाखवते .
 “ श्री. शिवाजी मंदिर “ हे नाव ऐकल्यानंतर ...डोळ्यासमोर अनेक वेगवेगळ्या कलाकारांची नावे येतात.

या रंगमंचाने कलाकाराना निर्माण केले . त्यांच्या व्यक्तिगत जीवनात सक्षमतेची पाठराखण केली. नाव, पैसा , आपली स्वत:ची ओळख ह्याच रंगमंचाने निर्माण करून दिली....ह्याच श्री. शिवाजी नाट्य मंदिरात थियेटर ऑफ रेलेवंस नाट्य सिद्धांत रंगभूमीला “ वैचारिक “  रंगभूमी बनवण्यासाठी सातत्याने कलात्मक नाटकांचे प्रयोग करत आहे . नवीन वैचारिक प्रेक्षक वर्ग रंगभूमीला थियेटर ऑफ रेलेवंस ने दिला आहे. नाटक अनहद नाद – unheard sounds of universe “ या मंजुल भारद्वाज द्वारा लिखित आणि दिग्दर्शित नाटकाने केलेली हि कलात्मक सुरुवात आता रंगभूमीवर येणारी नाटके हे अनहद नाद नाटकाच्या समांतर असल्याचे दिसून येत आहेत.


थियेटर ऑफ रेलेवंस चे हे फेस्टिव्हल एक विश्वास आहे कलाकारांसाठी ....कि , हो आम्ही आमच्या कलेच्या जीवावर आपली कला सादर करण्यासाठी ”अर्थ “ निर्माण करू शकतो. कारण, रंगभूमीवर एक नाटक ज्यावेळी येते . त्यावेळी त्याला लागणारा खर्च ज्याला प्रोडक्शन कॉस्ट बोलतात ती जास्त लागते . थियेटर ला लागणारा खर्च आणि इतर लागणारा खर्च यांची किंमत जास्त असते. या कारणास्तव नाटकाना येणारा खर्च हा अवाक्या बाहेरच असतो ... कलाकारा बद्दल बोलायचे झाले तर ते फक्त जातात आणि आपली सादरीकरणाची भूमिका बजावून येत असतात. त्यामध्ये , मग प्रोड्युसर असेल तर तो खर्च करतो आणि नसेल तर मग , नाटक रंगभूमीवर येतच नाही. आणि जरी नाटक रंगभूमीवर आले तरी त्यामध्ये काम करणारे कलाकार हे ठरलेले असतात. त्यामुळे, नवीन कलाकार रंगभूमीवर येण हि कठीणच होऊन जाते. मग , नवीन कलाकार आपल्या कलेला दाबून ठेवून कोणता तरी वेगळा मार्ग स्वीकारतात आणि कलेला हृदयात दाबून ठेवतात. थियेटर ऑफ रेलेवंस नाट्य सिद्धांत एकमेव तत्व आहे . जे नवीन कलाकारांना आपल्या commitment   च्या जोरावर आपल्या नाटकांमध्ये काम करण्याची जागा नेहमीच देत आहे . अनहद नाद च्या यात्रे मध्ये पाहिलं तर , मला आलेला अनुभव आहे ... अनहद नाद च्या प्रवासात जे प्रेक्षक नाटक पाहण्यासाठी आले त्यापैकी , काहींनी स्टेज वर येण्याचा अनुभव घेतला आहे. “ अर्थ ” निर्माण करण्यासाठी आपल्या कलेला जिवंत ठेवण्यासाठी अनहद नाद मध्ये असणारे आम्ही कलाकार सातत्याने स्वबळावर आणि प्रेक्षकांच्या सहयोगाने सतत नाटकांचे प्रयोग करत आहोत ... जसं अनहद नाद नाटकाला कोणीही प्रोड्युसर नसताना त्याचे आता पर्यंत आम्ही १३ प्रयोग लावले आहेत ... थियेटर ऑफ रेलेवंस नाट्य सिद्धांतामध्ये प्रेक्षक हा पहिला आणि सशक्त रंगकर्मी आहे. त्यामुळे, हा रंगकर्मी कलाकारांना जिवंत ठेवण्यासाठी नेहमीच आपल्या सहकार्याच्या भूमिकेत मी पाहिला आहे ....

थियेटर ऑफ रेलेवंस रंगभूमीच्या नव्याने कलात्मक निर्मितीच्या प्रक्रियेमध्ये ...

थियेटर ऑफ रेलेवंस नाट्य सिद्धांताच्या नाटकांमधील संकल्पना प्रेक्षकांना रंगभूमीच्या जवळ आणत आहे. हा धागा विश्वासाचा आहे कलात्मकतेचा आहे. नवीन विचार आणि संकल्पनांचा आहे... ज्यामध्ये कलाकार आपल्या कलेसाठी प्रतिबद्ध असतात आणि प्रेक्षक हे जीवनात आपली भूमिका उन्मुक्त्तेने जगण्यासाठी प्रेरित करत असतात . प्रेक्षकांना नाटकातील संवाद हे स्वत: बद्दल विचार करण्यासाठी प्रेरणा देतात ... या धावपळीच्या जगामध्ये ज्या ठिकाणी एकही क्षण शांतता राहिलेली नाही त्याच ठिकाणी आपल्या अस्तित्वाच्या शोधात ज्यावेळी प्रेक्षक या कलाकृतींना पाहत असतो त्यावेळी मनातील चलबिचल काही काळ थांबते आणि स्वत: बद्दल विचार करण्याची प्रक्रिया सुरु होते .. नाटकातील संवाद हे प्रेक्षकांना त्यांच्या आयुष्यातील गुंता दाखवतात आणि मग, तो गुंता सोडवण्यासाठी चे असणारे मार्ग हि, या नाटकांमध्ये अनुभवायला मिळतात.
नाटक गर्भ ची रंगभूमीवर झालेली प्रस्तुती... ( दिनांक – १५ नोव्हेंबर २०१७ ,सकाळी – ११.०० वा. )

मंजुल भारद्वाज द्वारा लिखित आणि दिग्दर्शित नाटक “ गर्भ “ सात्विक विचार ...जीवनाकडे पाहण्याचा सकारात्मक दृष्टीकोन या नाटकामुळे कलाकार व प्रेक्षकांना अनुभवायला मिळतो ...श्री. शिवाजी नाट्य मंदिर मध्ये ज्यावेळी गर्भ नाटकाची प्रस्तुती झाली त्यावेळी वेळ हि सकाळी ११.०० वाजताची होती.  एवढ्या सकाळी शिवाजी मंदिर , मध्ये आलेला प्रेक्षक वर्ग हा वैचारिक असल्याचे जाणवले. कलाकृती पाहून भारावलेला आणि स्वत: च्या अंतकरणात डोकावून पाहत या कलाकृतीचे वर्णन करत ... त्यांना जीवनात मिळालेले अनुभव त्या ठिकाणी दिसू लागले... प्रेक्षकांचे आलेला रिस्पोंस – नाटकामध्ये असणाऱ्या मुद्रा ह्या खूपच वेगळ्या आहेत... मनाला भावणाऱ्या आहेत ...लेखक , दिग्दर्शक – मंजुल भारद्वाज यांनी शोधून काढलेल्या आहेत ... आता पर्यंत पाहिलेल्या नाटकांमध्ये कधीही पाहिलेल्या नाहीत ...आणि एकदम मनाला भावणाऱ्या मुद्रा आहेत... नाटकाच वैशिट्य म्हणजे हे नाटक सादर करणारे कलाकार – अश्विनी नांदेडकर , सायली पावसकर , कोमल खामकर , योगिनी चौक आणि तुषार म्हस्के अगदी सामान्यता जड वाटणारे शब्द अगदी सहज सादर करतात... हे नाटक सादर करत असताना मला जाणवले ... कि, ज्यावेळी मी रंगमंचावर येतोय त्यावेळी मला काहीच आठवत नाही आहे आणि त्या भावामाध्येही मी माझी मुद्रा योग्य घेतोय. योग्य ठिकाणी सहज जाऊन बसतोय आणि विंगेत आल्यावर एकदम सामान्य होऊन जात आहे ..त्यातच , मला नाटकातील म्युजिक हि करायचं असल्यामुळे स्टेज वर कलाकार आणि विंगेत टेक्निकल अशी गंमत अनुभवत आहे.. थोडा वेळही “ मी “ माझ्या ध्येयापासून लांब न जाता  दोन्ही भूमिका सहजतेने बजावताना दिसत होतो....

नाटक कधी सुरु झालं आणि कधी संपल हेच समजले नाही ..म्हणजे , हा काळ मोठा होता पण , सादरीकरण करत असताना छोटा वाटत होता .म्हणजेच , रंगमंचावरील माझी भूमिका मी जगत होतो.

नाटक अनहद नाद – unheard sounds of universe ची प्रस्तुती ( दिनांक – १६ नोव्हेंबर २०१७ ,सकाळी – ११.०० वा. )

मंजुल भारद्वाज द्वारा लिखित आणि दिग्दर्शित नाटक “ अनहद नाद -
unheard sounds of universe ” हे नाटक व्यक्तीच्या आत मध्ये असणाऱ्या कलाकाराला जिवंत करतो. हे नाटक पाहिल्यानंतर व्यक्तीच्या आत असणारा कलात्मक नाद तोंडातून बाहेर येऊ लागतो ...चेहऱ्यावर शांतता पसरलेली असते. प्रेक्षक त्याच्या आतील आवाजाला ऐकल्यानंतर पवित्र आणि सात्विक मनाने ...मनात असणारे सात्विक भाव बोलू लागतो ..थोड्या वेळाने बोलतो जीवन जगलो मी आता ..हे नाटक पाहिल्यानंतर प्रेक्षक असेही बोललेत ...या धकाधकीच्या जीवनात एवढा वेळ कुठे आहे ..कि आपण , स्वत:चा आवाज ऐकू शकतो ... मनात असणाऱ्या सर्व दुनियादारीच्या विचारांनी घेरल आहे त्याच ठिकाणी अनहद नाद पाहिल्यानंतर मनाला शांतता मिळाली आहे ... हे नाटक सादर करत असताना मला आलेला अनुभव हा फारच वेगळा होता ...intuition , impulse  आणि vibrations यांना घेऊन कलाकार पेर्फोमंस करत असतो. डोळ्यासमोर प्रेक्षकांच्या मनात असणाऱ्या भिंती काही वेळ जाणवू लागल्या डोकं एकदम जड झालेलं... थोड्या वेळाने स्वत: ला सावरले आणि अनहद नादच्या संवादाकडे लक्ष दिले आपो आप फोकस वाढत असल्याचे जाणवू लागले.


 


थकलेले शरीर आपोआप शांत झाले. शरीर उभं नाही माझ्यातील लागलेली आग ...म्हणजे चेतना पर्फोर्मंस करत आहे... विंगेत आल्या नंतर छातीला हात लावल्यानंतर माझी छाती गरम झाल्याची मला जाणवली...


नाटक न्याय के भंवर में भंवरी च सादरीकर ( दिनांक – १७ नोव्हेंबर २०१७ ,सकाळी – ११.०० वा. )

नाटक “ न्याय के भंवर में भंवरी हे नाटक मंजुल भारद्वाज यांनी लिहिलेलं आणि दिग्दर्शित केलेलं नाटक . न्याय  संगत व्यवस्थे मध्ये स्त्री आणि पुरुष या दोघांना समान अधिकाराने जीवनामध्ये जगण्याची हुंकार आहे . या नाटकामध्ये असणाऱ्या कलाकार ह्या सुप्रसिद्ध अभिनेत्री बबली रावत आहेत ...नाटकाच सादरीकरण सुरु होत आणि एका प्रेक्षकाच्या भूमिकेत मी बसलेलो असताना माझ्या मनात येणारे प्रश्न माझ्या आत सुरु असणारी एका माणसाची आहे कि पुरुषाची आहे याचं बिंब दाखवते.... प्रश्न उभी करते आणि माणूस बनण्याच्या प्रक्रियेत घेऊन जाते... मनात होणारी हि प्रक्रिया अनुभवून खूप – खूप समाधान मनात निर्माण झाले ...

  


१२ ऑगस्ट १९९२ ला रंगचिंतक – मंजुल भारद्वाज यांनी सुरु केलेलं रंग आंदोलन आज समाजामध्ये सकारात्मक दृष्टीकोन निर्माण करत आहे ... जीवनाचा सुंदर मंत्र दिला आहे आपण वस्तू नाही आहोत आपण व्यक्ती आहोत .. एक माणूस आहोत, हे सुंदर जीवन आपलं आहे....
      


या फेस्टिव्हल च आयोजन थियेटर ऑफ रेलेवंसचे अभ्यासक आणि शुभचिंतक यांनी केलं आहे ....
कलाकार – बबली रावत , अश्विनी नांदेडकर , योगिनी चौक , सायली पावसकर , कोमल खामकर आणि तुषार म्हस्के आहेत .
प्रकाश योजना – शिवाजी आणि निखील
बॉक्स ऑफिस कलेक्शन – स्वाती वाघ
आयोजक – तुषार म्हस्के
स्थळ – श्री. शिवाजी नाट्य मंदिर, दादर ( प ), मुंबई
दिनांक – १५ ते १७ नोव्हेंबर २०१७
वेळ – सकाळी ११.०० वाजता.



                    Photo created by Rohit Kasar
आपल्या शरीराची रचना हि पाच तत्वांनी झालेली आहे ....त्याच पद्धतीने रंगभूमीच्या ” वैचारिक कलात्मक  निर्मितासाठी ” आम्ही ५ कलाकार कार्य करत आहोत ..


रंगकर्मी
तुषार म्हस्के
९०२९३३३१४७