Saturday 29 April 2017

मेरे होने का वजूद आज यह हवाएँ दे रही हैं !...तुषार म्हस्के

मेरे होने का वजूद आज यह हवाएँ दे रही हैं ना मिट पाई यह मेरे होने की आवाज 
आज यह गूंज रही हैं इन वादियोंमें 
किया था वह रंगकर्म आज उसकी ध्वनि सुनाई दे रही हैं 
क्या जोश था वह ...?
क्या तड़प थी वह ....?
क्या जुनून था वह ....?


ना भूक थी , ना प्यास थी 
बस आपने आप को निर्माण करने की वह जिद्द थी 
गिरता रहा , 
चलता रहा ,
बस आपने आप को मैं खोजता रहा..
बस , तनहाई मिली...
तनहाई की जीवन रेखा में आशा की किरण सामने आई...
सपना रंगकर्म का लिए निकल पड़ा मैं ...
साबित करने मैं आपने आप को ...
साबित करने इस दुनिया को ...
दौड़ पड़ा मैं अपने आत्मा के साथ ...
विचार ,शरीर और मन की कसौटी लिए ...
अपने जीवन को सार्थक बनाने ...
अपना मुखवटा उतारकर ....
कला के साधना की और ...
आज उसकी वह गूंज मुझे वापस सुनाई देने लगीं है 
आपने वजूद के साथ !
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रंगकर्मी
तुषार म्हस्के
tmhaske09@gmail.com
9029333147

Thursday 13 April 2017

थिएटर ऑफ़ रेलेवंस :- “राजनीति’ विषय पर नाट्य पूर्वाभ्यास कार्यशाला – पड़ाव -3

थिएटर ऑफ़ रेलेवंस
“राजनीति’
‘खेती, किसान,आत्महत्या और डिजिटल इंडिया’
‘अपनी ही ‘खोपड़ी’ लिए खड़ा भारतीय ‘किसान’ और महान भारत का ‘जनमानस’ खामोश क्यों?’
विषय पर नाट्य पूर्वाभ्यास कार्यशाला – पड़ाव -3
उत्प्रेरक – रंग चिन्तक मंजुल भारद्वाज
कब : 23 - 27 अप्रैल,2017
कहाँ : युसूफ मेहरअली सेंटर , पनवेल ( मुंबई)
सहभागी : वो सभी देशवासी जो स्वयं को लोकतंत्र का पैरोकार और रखवाले समझते और मानते हैं


विवरण :-
हमारा जीवन हर पल ‘राजनीति’ से प्रभावित और संचालित होता है पर एक ‘सभ्य’ नागरिक होने के नाते हम केवल अपने ‘मत का दान’ कर अपनी राजनैतिक भूमिका से मुक्त हो जाते हैं और हर पल ‘राजनीति’ को कोसते हैं ...और अपना ‘मानस’ बना बैठे हैं की राजनीति ‘गंदी’ है ..कीचड़ है ...हम सभ्य हैं ‘राजनीति हमारा कार्य नहीं है ... जब जनता ईमानदार हो तो उस देश की लोकतान्त्रिक ‘राजनैतिक’ व्यवस्था कैसे भ्रष्ट हो सकती है ? .... आओ अब ज़रा सोचें की क्या बिना ‘राजनैतिक’ प्रकिया के विश्व का सबसे बड़ा ‘लोकतंत्र’ चल सकता है ... नहीं चल सकता ... और जब ‘सभ्य’ नागरिक उसे नहीं चलायेंगें तो ... बूरे लोग सत्ता पर काबिज़ हो जायेगें ...और वही हो रहा है ... आओ ‘एक पल विचार करें ... की क्या वाकई राजनीति ‘गंदी’ है ..या हम उसमें सहभाग नहीं लेकर उसे ‘गंदा’ बना रहे हैं ... 23 - 27 अप्रैल,2017 को “राजनीति’ विषय पर नाट्य पूर्वाभ्यास कार्यशाला – पड़ाव 3 का आयोजन कर हमने एक सकारात्मक पहल की है .रंग चिन्तक मंजुल भारद्वाज की उत्प्रेरणा में सभी सहभागी उपरोक्त प्रश्नों पर मंथन करेगें . हम सब अपेक्षा करते हैं की ‘गांधी , भगत सिंह , सावित्री और लक्ष्मी बाई’ इस देश में पैदा तो हों पर मेरे घर में नहीं ... ‘खेती, किसान,आत्महत्या और डिजिटल इंडिया’

‘अपनी ही ‘खोपड़ी’ लिए खड़ा भारतीय ‘किसान’ और महान भारत का ‘जनमानस’ खामोश क्यों?... आओ इस पर मनन करें और ‘राजनैतिक व्यवस्था’ को शुद्ध और सार्थक बनाएं ! आपकी सहभागिता के प्रतीक्षारत !