Sunday, 15 March 2015

सोच वो राजा शिवाजी था ……

सोच वो राजा शिवाजी था …… 
सत्ता खिलाफ़ वो लढा था …
अपने लिये नही …मनुष्य के लिये जिया था …… 
किसी एक सत्ता के लिये उसने झक झोरा था …… 
अभिव्यक्त होनेे के लिये निर्माण उसने किया था …
जाती वाद में उसका युद्ध नही था …… 
धर्म के खिलाफ वो नही  बोला था …
सबको गुलामी के बोज से उसने निकाला था …
सामन्य लोगोंको दबाने वालो को उसने मारा था …. 
सत्ता के लिए नही … 
सोच था वो इन्सान नही एक विचार था …… 
जनता के  ‘’ स्वराज्य ‘’ के लिए निर्माण उसने किया था  …
३०० साल बाद भी उतनाही जल्लोष उसके जन्मतिथी पर होता है  …
उस ‘गीता’  के सूत्र को उसने आज भी जनता के दिल में जलाये रखा है …
अंधेरे रास्तो पे उसने रोशनी का दिया जलाया था …
आत्मा कभी मरती नही …… 
 हिंदुस्तान कि सल्तनत पर किसी के साम्राज्य को उसने ललकारा था …… 
सत्ता को नही जनता के सुख को समजो …… 
हाथी के सामने चीटी जैसे साम्राज्य  का उसने निर्माण किया था …. 
उस साम्राज्य मे भी सृजन का निर्माण उसने किया था …
आवाहन है सत्ता के लिये रोने वालो …… 
नुमाइश नही …… साधना करो …
क्योंकी …ये राजशाही नही …लोकशाही है …
सत्ता बाजारीकरण नही है …
brand नही star बनो …… 
हर एक को गुलाम नही …… 
उन्मुक्त जीवन जिने वाला मानव बनाओ …
बस …शिवाजी के तत्व को जीवन मे ले आओ …
नही तो जनता तुम्हे भरे बाजार नंगा करके छोडेगी …… 
और सत्ता का अंत  होना हि क्रांती कि शुरुवात है ……
जनमानस में शिवाजी का निर्माण करना  हि …… 
कला का ध्येय है …. 

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