Tuesday, 17 February 2015

लाल - लाल , सुंदर - सुंदर रोशनी से बहुत हि चमकते हुए दिखा.......



उसको देखणे के लिये दौड लगाई ………. दिख नही रहा था ………वैसे हि थोडा थोडा दिखने लगा ……. वह नरीमन point  वाली इमारत के पिछे  छुपा  हुवा था ……. मै आगे आया  उसको शांत से बैठकर देखणे के लिये ……बैठना  था…… लेकिन , समुंदर के किनारे जगह नही थी ………थोडीसी जगह मिली …. मैं बैठके देखणे लगा …… अभी भी १५ मिनट  का समय था ……… उसके पास …… उसको देखा तो ……सुंदरता से परिपक्व  …… बहुत हि शान थी उसकी …….उसका एक रुबाब था …… अपनी लाल - लाल , सुंदर - सुंदर रोशनी से बहुत  हि चमकते हुए दिखा ……. उसको देखने के  बाद बहुत अच्छा लगा ……. आज शांतीवन जैसे नही बहुत हि अलग दिखाई दे रहा था ……. उसके जाने का अंदाज हि अलग था ……उसको जाणे  के लिये …… पहाड नही ……. आज समुंदर ने जगह ले लि थी ……लगा  समुंदर के अंदर जा रहा है ……. अपना एक  रिदम ……. अपनी ही नजरोंसे एक आकस्मित वर्णन …… जिने कि प्रेरणा देता हुवा सुरज ……. अपनी हि शान वाली रफ्तार में चले जाणा ……. दुसरी दुनिया को प्रकाश देणे ……. 


वह कही गया नही था ……. वह यही है इस ब्रह्मांड में ……… कला तो बस वसुंधरा कर रही है ……. अपने अलग अलग आयामो को  निहार रही …… सजा रही है …… उज्वलित करती आ रही है ……… नया सौंदर्य दिखाती है ……. नयापण देती है ……. जीवन का हर पल जीने के लिए प्रवृत्त करती हुई ……. पृथ्वी ……उसमें भी artist  कि art  देती है ……. मुझे हर पाल नया पल देती है ……. अपने सृजनात्मक विचार और कला का सूत्रपात कर रही है …….

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