मेरे होने का वजूद आज यह हवाएँ दे रही हैं ना मिट पाई यह मेरे होने की आवाज
आज यह गूंज रही हैं इन वादियोंमें
किया था वह रंगकर्म आज उसकी ध्वनि सुनाई दे रही हैं
क्या जोश था वह ...?
क्या तड़प थी वह ....?
क्या जुनून था वह ....?
ना भूक थी , ना प्यास थी
बस आपने आप को निर्माण करने की वह जिद्द थी
गिरता रहा ,
चलता रहा ,
बस आपने आप को मैं खोजता रहा..
बस , तनहाई मिली...
तनहाई की जीवन रेखा में आशा की किरण सामने आई...
सपना रंगकर्म का लिए निकल पड़ा मैं ...
साबित करने मैं आपने आप को ...
साबित करने इस दुनिया को ...
दौड़ पड़ा मैं अपने आत्मा के साथ ...
विचार ,शरीर और मन की कसौटी लिए ...
अपने जीवन को सार्थक बनाने ...
अपना मुखवटा उतारकर ....
कला के साधना की और ...
आज उसकी वह गूंज मुझे वापस सुनाई देने लगीं है
आपने वजूद के साथ !
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रंगकर्मी
तुषार म्हस्के
tmhaske09@gmail.com
9029333147
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