क्या यादें हैं वो ...
जो रंग की राह पर चलीं ..
अपने आप को खोजकर तराशते हुए
अपने ध्येय की ओर चलीं ....
ना कोई थकान , ना कोई लालच
बस अपने आपको खोजने हम चलें
पल में हँसते , पल में रोते ..
हम एक दुसरे का हात थाम कर निकल पड़े ....
ना भूक , ना प्यास ....
बस लक्ष अपने आप पर विजय प्राप्त करना ...
धूल , मिट्टी , सूरज की आग में तपते हुए हम चलें ...
रंगकर्म करने.... दुनिया को दृष्टि देने ...
हम अपनी राह पर चलें ....
इस मायानगरी से परे ...
अनजान भयावह जंगल में ...
अंधेरी रात में ...हम चमकते हुए जुगनुओं को ढूंढने
उस ज्ञान के पेड़ की ओर चलें ....
सुकून भरे पल को
अपनी अनसुनी आवाज को सुनने हम चलें...
निती को अपनाते हुए ...विचारोंकी स्पष्टता को साधते हुए ....
हम ' रंगसाधना ' करने चलें .....
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थियेटर ऑफ रेलेवंस रंगकर्मी
- तुषार म्हस्के
- तुषार म्हस्के
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