Wednesday, 16 September 2015

मेरे मन की तितली.....


एक खुली मुस्कान ,
सांस भरी खुशबु ,
मन में विचार की धाराएँ,
आँखे भरी भरी सी ,
आज तू खिलती रहे ,
हँसती , नाचती और गुनगुनाती हुई ,
ये तितली एक फूल से दूसरे फूल पर मंडराती रही ,
जीने का वजूद ढूंढती रही ,
सूरज के आने से आज वो खिल खिलाने लगी ,
अपने आप को तराशने लगी ,
डर था दिल में खो जाने का ,
आज वो समझने लगी ,
अपने से निर्णय लेने लगी ,
मिलना और बिछड़ना येतो क़ुदरत का करिश्मा है ,
उस बिछडन को स्वीकार करते हुए आज विचारोंके साथ चलने लगी ,
ख़ुशी के गीत गुन गुनाते हुए हँसी भरे पल को आज शब्दों में तबदील करने लगी ,

मेरे मन की तितली आज मुस्कुराने लगी....

तुषार म्हस्के

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